The Single Best Strategy To Use For baglamukhi sadhna
The Single Best Strategy To Use For baglamukhi sadhna
Blog Article
मेरे पास ऐसे बहुत से लोगों के फोन और मेल आते हैं जो एक क्षण में ही अपने दुखों, कष्टों का त्राण करने के लिए साधना सम्पन्न करना चाहते हैं। उनका उद्देष्य देवता या देवी की उपासना नहीं, उनकी प्रसन्नता नहीं बल्कि उनका एक मात्र उद्देष्य अपनी समस्या से विमुक्त होना होता है। वे लोग नहीं जानते कि जो कष्ट वे उठा रहे हैं, वे अपने पूर्व जन्मों में किये गये पापों के फलस्वरूप उठा रहे हैं। वे लोग अपनी कुण्डली में स्थित ग्रहों को देाष देते हैं, जो कि बिल्कुल गलत परम्परा है। भगवान शिव ने सभी ग्रहों को यह अधिकार दिया है कि वे जातक को इस जीवन में ऐसा निखार दें कि उसके साथ पूर्वजन्मों का कोई भी दोष न रह जाए। इसका लाभ यह होगा कि यदि जातक के साथ कर्मबन्धन शेष नहीं है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। लेकिन हम इस दण्ड को दण्ड न मानकर ग्रहों का दोष मानते हैं।व्यहार में यह भी आया है कि जो जितनी अधिक साधना, पूजा-पाठ click here या उपासना करता है, वह व्यक्ति ज्यादा परेशान रहता है। उसका कारण यह है कि जब हम कोई भी उपासना या साधना करना आरम्भ करते हैं तो सम्बन्धित देवी – देवता यह चाहता है कि हम मंत्र जप के द्वारा या अन्य किसी भी मार्ग से बिल्कुल ऐसे साफ-सुुथरे हो जाएं कि हमारे साथ कर्मबन्धन का कोई भी भाग शेष न रह जाए।
शत्रोर्जिह्वां च खड्गं शर-धनु-सहितां व्यक्त-गर्वाधि-रूढां ।
१५.ॐ ह्लीं श्रीं अं श्रीभोगिन्यै नमः मुख-वृत्ते (सम्पूर्ण मुख-मण्डल में) ।
२२. ॐ ह्लीं श्रीं चं श्रीभग-जिह्वायै नमः -वाम-बाहु-मूले (बाई कॉख में)
इति ते कथितं देवि! कवचं परमाद्भुतम्। यस्य स्मरण-मात्रेण, सर्व-स्तम्भो भवेत् क्षणात् ।।१
श्री अक्षोभ्य ऋषि द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी
अर्थात् ‘जिसके वध के लिए कृत्या का प्रयोग किया जाता है, उसे गुप्त रीति से मार देता है।’ इसीलिए महर्षि यास्क ने ‘वलगो वृणौतः’ (निघण्टु ६) वृञ् आच्छादने’ घातु से बनाया है। ‘वलगान्’ इसी द्वितीयान्त पद के अनुकरण से ‘बगला’ तान्त्रिक नाम निष्पन हुआ है।
वादी मूकति, रङ्कति क्षिति-पतिर्वैश्वानरः शीतति ।
३. श्रीजम्भिन्यै नमः दुष्टों या दुवृत्तियों को कुतर-कुतर कर टुकड़े करनेवाली को नमस्कार
उक्त कथानक के अनुकूल ‘कृष्ण-यजुर्वेद’ की काठक-संहिता में दो मन्त्र आए हैं, जिनसे श्रीबगला विद्या का वैदिक रूप प्रकट होता है- विराड्-दिशा विष्णु-पत्यघोरास्येशाना सहसो या मनोता ।
ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं श्रीबगलानने! मम रिपून् नाशय नाशय, ममैश्वर्याणि देहि देहि, शीघ्रं
जानुनी’सर्व-दुष्टानां’, पातु मे वर्ण-पञ्चकम् । ‘वाचं मुखं ‘तथा’पादं’, षड्-वर्णा परमेश्वरी ।।८
सर्व-मन्त्र-मयीं देवीं, सर्वाकर्षण-कारिणीम् । सर्व- विद्या-भक्षिणीं च, भजेऽहं विधि-पूर्वकम् ॥
प्रसन्नां सुस्मितां क्लिन्नां, सु-पीतां प्रमदोत्तमाम् । सु-भक्त-दुःख-हरणे, दयार्द्रांं दीन-वत्सलाम् ।